दुनिया की हर चीज ठोकर लगने से टूट जाती है, एक कामयाबी ही है जो ठोकर लगने से मिलती हैं
भूमिका:
जब कोई चीज़ ज़मीन से टकराती है तो वो या तो टूट जाती है, या बिखर जाती है। लेकिन इंसान — वो एकमात्र ऐसा प्राणी है जो ठोकर खाकर टूटता नहीं, सीखता है।
दुनिया में हर बड़ी सफलता के पीछे कोई न कोई ठोकर की कहानी जरूर होती है।
ठोकरें क्यों ज़रूरी हैं?
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ठोकरें आत्म-विश्लेषण कराती हैं
जब हम गिरते हैं, तब हम खुद से सवाल करना सीखते हैं – क्या गलत हुआ? और कैसे सुधारा जाए? -
ठोकरें हमें मजबूत बनाती हैं
हर गिरावट हमारी मानसिक ताकत को चुनौती देती है, और वही चुनौती हमें resilient बनाती है। -
सफलता का असली स्वाद तब आता है जब हम संघर्ष से गुजरते हैं
बिना गिरे सफलता की कीमत समझ नहीं आती।
जीवन के कुछ उदाहरण:
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थॉमस एडिसन को 1000 बार विफलता मिली, लेकिन उन्होंने बल्ब बना कर दुनिया को रोशनी दी।
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ए. पी. जे. अब्दुल कलाम को भी जीवन की शुरुआत में कई संघर्षों का सामना करना पड़ा, लेकिन वही ठोकरें उन्हें मिसाइल मैन बना गईं।
सफलता की असली कुंजी: ठोकर खाओ, सीखो और फिर से उठो
हर बार गिरने के बाद उठना, growth mindset की निशानी है। और यही मानसिकता आपको भीड़ से अलग करती है।
निष्कर्ष:
सफलता कभी सीधी रेखा में नहीं आती।
वो हमेशा ठोकरों, अस्वीकृति और असफलता के रास्तों से होकर गुजरती है।
लेकिन अगर आप हर गिरावट से कुछ सीखते हैं — तो यकीन मानिए, आप कामयाबी की ओर बढ़ रहे हैं।


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