विश्वास की परख" vishwas ki parakh


गाँव से शहर आए मास्टर साहब को अपने शिष्य राहुल से मदद की उम्मीद थी, लेकिन उसे ठंडा व्यवहार मिला।
अनजान शहर में असहाय मास्टर साहब की मदद उनके दूसरे छात्र अनमोल ने की, जिसने उन्हें पिता समान सम्मान दिया।
कहानी विश्वासघात और असली अपनत्व के बीच के अंतर को दर्शाती है।
"विश्वास की परख" एक ऐसी कहानी है, जो दिल को छू जाती है और मानवीय संवेदनाओं का एहसास कराती है।


विश्वास की परख" vishwas ki parakh

विश्वास की परख" vishwas ki parakh


 एक सुबह दरवाजे की घण्टी बजी तो राहुल जाकर दरवाजा खोजता है तो देखता है कि गाँव से मास्टर साहब और उनकी पत्नी आई हुयी है। लेकिन राहुल उनको देखकर खुश नही होता है उनको अंदर बुलाता है और पुछता है कि शहर कैसे आना हुआ ।

विश्वास की परख" vishwas ki parakh

मास्टर जी कहते हैं मेरी पत्नी का तबियत खराब है और मैं इन्हे किसी डाक्तर से दिखाने आया हूँ। सोचा यहा में किसी को जानता नही हूँ • तुम मेरे साथ चलकर किसी डाक्टर से दिखा देना राहुल बहाना बनाते हुए बोला कि  मुझे माफिस के काम से फुरसत नहीं है मैं नहीं जा पाउँगा । तब तक राहुल की पत्नी आती है और  राहुल को लेकर को अंदर चली जाती है। मास्टर साहब को एहसास हो गया कि राहुल हमारे आने से खुश नहीं है। वह हाथ धोने के लिए अन्दर गए। तो राहुल और उसके पत्नी को आपस मे बात करते हुए सुन लिया । वे बात कर रहे थे कि ये लोग कहा से आ  गए। एक तो उनकी तबियत खराब है । उनके करण यदि हमारी भी तबियत खराब हो गया तब क्या होगा । दूसरे तो अभी कुछी देर मे मरी सहेलिया आने वाली है वे सब क्या सोचेंगी । राहुल बोला एक बार मै.गांव गया था और वैसे बोल दिया कि कभी जरुरत हो तो शहर आइयेगा । 


विश्वास की परख" vishwas ki parakh

राहुल जैसे ही चाय लेकर बाहर आता है देखता है कि मास्टर जी अपनी पत्नी के साथ जा चुके थे। अनजान  शहर में मास्टर साहब पूछते-पूछते हास्पिटल पर पहुंचे ।


विश्वास की परख" vishwas ki parakh


वहा एक लड़‌का मिला वह मास्टर साहब को पहले से जानता था। वह बोला मास्टर साहब आप मुझे पहचाना मै अनमोल हूँ।  मै आप से पढ़ा हुन। मास्टर साहब ने सारी बाते बताई । अनमोल बोला मास्टर साहब आप फिकर ना करे । यहा के डाक्टर से पहचान है आप लोगो को उनसे मिलाता हुन । 

विश्वास की परख" vishwas ki parakh

डाक्टर से मिलने के बाद अनमोल बोला आप लोगो को जाना नहीं है तीन-चार दिन अब मेरे घर पर रुकना है जाते हुए अनमोल बताते हुए जा रहा था कि ये मेरे पिता के समान है।  मास्टर साहब के आखो मे आसू आ गये । मास्टर साहब  के कोई सन्तान नही था । लेकिन अनमोल ने मास्टर के  वह भी कमी दूर कर दी । मास्टर साहब को राहुल पर भरोसा था लेकिन राहुल ऐसा करेगा उन्होंने कभी सोचा नही था। मास्टर साहब रोते हुए सोचते रहे की कितना भरोसा था राहुल पर और उसी के भरोसे मै शहर तक चला आया । और वहि पीठ दिखा गया । 

निष्कर्ष

यह कहानी मानव स्वभाव, संबंधों की सच्चाई और विश्वासघात के भावनात्मक पहलू को दर्शाती है। मास्टर साहब, जिन्होंने अपने जीवन में कई छात्रों को शिक्षा दी और संस्कार दिए, एक अनजान शहर में मदद की उम्मीद से आते हैं, लेकिन उनके अपने ही शिष्य राहुल ने उन्हें निराश कर दिया।

राहुल का व्यवहार यह दिखाता है कि लोग अवसर और परिस्थिति के अनुसार बदल जाते हैं। वहीं दूसरी ओर, अनमोल का चरित्र एक आदर्श शिष्य का प्रतीक है, जो अपने गुरु का सम्मान करता है और उन्हें पिता समान मानता है।

इस कहानी का संदेश स्पष्ट है:

  1. सच्ची सेवा और सम्मान व्यक्ति के संस्कारों और उसकी सोच में बसते हैं, न कि सिर्फ औपचारिक शब्दों में।
  2. विश्वास एक नाजुक धागा है, एक बार टूट जाए तो जोड़ना मुश्किल होता है।
  3. कर्मों की पहचान मुश्किल समय में होती है, और वही समय यह तय करता है कि कौन अपना है और कौन पराया।
  4. कहानी क्यों पढ़ें?   यह कहानी जीवन के बदलते रिश्तों की सच्चाई को उजागर करती है।यह दर्शाती है कि असली अपनत्व और मानवीयता कभी-कभी अनपेक्षित जगहों से मिलती है।कहानी भावनाओं को छूती है और हमें सोचने पर मजबूर करती है कि हमारे कर्म ही हमारी असली पहचान होते हैं।



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