कर्मों का फल: एक राजा की कहानी"
राजा देखता है की एक महात्मा अपना मांस खा रहा है और एक महात्मा कोयला खा रहा है । लेकिन राजा को तो अपने प्रश्नों का उत्तर चाहिए था । इस कहानी मे एक राजा अपने प्रश्न का जवाब ढूंढ रहा है । जिसको उसके अच्छे कर्मो के अनुसार फल मिला है । और वह राजा बन गया है । इस कहानी मे अच्छे कर्म के फल को दिखाया गया है । लेकिन अदली रहस्य को एक 5 साल के बच्चे ने खोला ।
कर्मों का फल: एक राजा की कहानी"
एक राजा बहुत गहरी सोच में था । उनके राज्य के सलाहकार और मंत्री ने पूछा कि राजा साहब आप क्या सोच रहे हैं। राजा ने कहा कि मैं सोच रहा हूं कि एक ही समय में एक साथ पता नहीं कितने बच्चे पैदा होते हैं लेकिन मैं ही क्यों राजा बना। मंत्री ने कहा कि आपके इस प्रश्न का जवाब यहां से दूर एक महात्मा रहते हैं वही देंगे।
राजा अपने घोड़े पर सवार होकर महात्मा के पास पाहुंचा वहा राजा ने देखा कि वह महात्मा कोयला खा रहे थे। राजा ने हमें महात्मा से वही प्रश्न किया। महात्मा ने कहा कि इस प्रश्न का जवाब यहां से दूर जंगल में एक और महात्मा है वही देंगे।
राजा फिर अपने घोड़े पर सवार हुआ और जंगल की तरफ चल पड़ा। जब राजा दूसरे महात्मा के पास पहुंच गए तो देखा कि वह महात्मा अपना ही मांस नोच के खा रहा है। राजा ने महात्मा से वही प्रश्न किया। महात्मा ने जवाब दिया कि यहां से कुछ दूर एक गांव है वहा एक 5 साल का बच्चा है जो मरने वाला है उसके पास जाओ वह बच्चा जरूर इसका जवाब देगा।
राजा अपने घोड़े पर सवार होकर गांव की तरफ चल पड़ा। वहा पहुंचने के बाद राजा ने वही प्रश्न किया। बच्चे ने कहा कि इससे पहले जिन दो महात्मा से आप मिले हैं वह दोनों और आप और मैं चारो पिछले जन्म में भाई थे। एक बार हम चारो जंगल में लकड़ी काटने के लिए गए हुए थे। जब हम चारो को भूख लगी तो हम भोजन करने के लिए बैठ गए। तब तक एक साधु आये और हमसे भोजन मंगाने लगे। जो आपसे पहले मिले थे उन्हें कहा कि मैं भोजन आपको दे दूंगा तो मैं क्या खाऊंगा कोयला। दूसरे ने कहा कि मैं भी भोजन आपको दे दूंगा तो मैं क्या खाऊंगा अपना मांस। मैं भी बहना बना दिया। लेकिन जब साधु ने आपसे भोजन मांगा तो आपने अपना भोजन दे दिया। वह साधु ने कहा जाओ तुम चारो को तुम्हारे कर्म और ब्यवहार के अनुसर फल मिलेंगे। इस लिए आप राजा हैं
निष्कर्ष:
यह कहानी हमें सिखाती है कि हमारे पूर्व जन्म के कर्म और हमारे वर्तमान जीवन के व्यवहार का गहरा संबंध होता है। निःस्वार्थता, उदारता और अच्छे कर्म जीवन में ऊँचाइयों तक पहुँचाते हैं, जबकि स्वार्थ और क्रूरता दुःख और कष्ट का कारण बनती है। अपने कर्मों में सदैव सत्य, परोपकार और सहानुभूति को स्थान देना चाहिए, क्योंकि हमारा आज का कर्म ही हमारे भविष्य की नींव रखता है।
कहानी से मिलने वाले लाभ:
कर्मों का महत्व: यह कहानी सिखाती है कि अच्छे और बुरे कर्मों का परिणाम निश्चित होता है। जैसा हम बोते हैं, वैसा ही हमें फल मिलता है।
निःस्वार्थता का पुरस्कार: निःस्वार्थ भाव से किए गए कार्य जीवन में उन्नति और सम्मान दिलाते हैं, जैसे राजा को राजसत्ता मिली।
स्वार्थ का परिणाम: स्वार्थ और कटुता का परिणाम कष्टदायक हो सकता है, जैसा दो महात्माओं की हालत से स्पष्ट होता है।
पुनर्जन्म और कर्म का सिद्धांत: यह कहानी भारतीय संस्कृति में पुनर्जन्म और कर्मफल के सिद्धांत को सरलता से समझाती है।
सच्चे संत की पहचान: कभी-कभी सरल और छोटे व्यक्तित्व (जैसे 5 साल का बच्चा) भी गहरी सीख और सच्चाई का परिचय दे सकते हैं।
जीवन में परोपकार का महत्व: हमें अपनी परिस्थितियों में भी दूसरों की मदद करने का भाव रखना चाहिए।
आत्मविश्लेषण का संदेश: राजा की तरह हमें भी अपने जीवन में आत्मचिंतन करना चाहिए कि हम आज जो हैं, उसके पीछे हमारे कौन से कर्म जिम्मेदार हैं।
कुल मिलाकर, यह कहानी हमें एक अच्छे और सार्थक जीवन जीने की प्रेरणा देती है।
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