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Emotional - : क्या हम सच में अच्छे हैं?"

                                       


इस युग का नाम कलयुग ऐसे ही नहीं पड़ा, यहां लोग अच्छा करने से ज्यादा अच्छा बनने का दिखावा करते हैं।"

यह वाक्य आज की सच्चाई को बखूबी बयां करता है। हम एक ऐसे दौर में जी रहे हैं जहाँ अच्छाई का मतलब अब दिल से किया गया कार्य नहीं, बल्कि दूसरों को दिखाया गया कार्य बन चुका है।

                                       

                                         

                                           

 कलयुग में अच्छाई नहीं, उसकी पब्लिसिटी ज़रूरी है

पहले के समय में लोग नेक काम छुपकर किया करते थे, ताकि उनकी नीयत साफ बनी रहे। लेकिन आज के डिजिटल युग में अगर किसी ने किसी की मदद की, और वो इंस्टाग्राम या रील में ना दिखे – तो वो अच्छाई अधूरी मानी जाती है।

 दिखावे का युग है – नीयत का नहीं।
कई बार लोग इतना एक्टिंग करते हैं कि खुद को भी सच मानने लगते हैं। पर असलियत यही है – जो अंदर से अच्छा होता है, उसे बाहर दिखाने की ज़रूरत नहीं होती।


 Psychology कहती है:

  • इंसान अब 'being good' से ज़्यादा 'looking good' में विश्वास करता है।

  • ज़्यादातर लोग approval के लिए अच्छा बनते हैं, न कि आत्मसंतोष के लिए।

  • Social Media ने लोगों को इतना दिखावटी बना दिया है कि अब सहानुभूति भी पब्लिक रिएक्शन के लिए होती है।


 समाज का पतन कैसे होता है?

जब अच्छाई सिर्फ दिखावे के लिए की जाती है, तब समाज की जड़ें कमजोर हो जाती हैं।

  • रिश्ते स्वार्थी हो जाते हैं।

  • दोस्ती भी अब followers पर आधारित होती है।

  • सच्ची भावनाओं की जगह अब filters ने ले ली है।


 समाधान क्या है?

  • सच्चाई को जियो, दिखाओ मत।

  • अच्छे काम करो, पर प्रचार की चाह में मत डूबो।

  • रियल बनो, परफेक्ट नहीं।

  • सोशल मीडिया पर नहीं, आत्मा में फॉलोअर्स बढ़ाओ।


 निष्कर्ष:

कलयुग की सबसे बड़ी विडंबना यही है — हम इंसान बने रहना भूलते जा रहे हैं, और एक दिखावटी पात्र बनते जा रहे हैं।
इसलिए जरूरी है कि हम आत्मनिरीक्षण करें। क्या हम सच में अच्छे हैं? या बस सोशल मीडिया पर अच्छे दिखना चाहते हैं?

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