दुख कई बार सलाह नहीं, सहारा मांगता है
"Pain doesn't always need a solution—sometimes it just needs someone who listens."
जब कोई दुख में होता है, तो अधिकतर लोग उसे सलाह देने लगते हैं—"ऐसा कर लो", "ऐसा मत सोचो", "सब ठीक हो जाएगा"। लेकिन क्या आपने कभी यह सोचा है कि शायद वो इंसान आपकी सलाह नहीं, आपका सहारा चाहता है?
दुखी व्यक्ति को आपकी बातों से ज्यादा आपकी मौन उपस्थिति, आपकी आंखों की चिंता, और आपकी मौजूदगी की गर्माहट चाहिए होती है। यह वो समय होता है जब शब्द कम और संवेदना ज़्यादा ज़रूरी होती है।
क्यों सलाह से ज़्यादा ज़रूरी है सहारा?
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दुख में दिमाग सुनने की बजाय महसूस करता है।
दुख के समय व्यक्ति का दिल ज्यादा सक्रिय होता है, जबकि दिमाग बंद हो जाता है। ऐसे में सलाह किसी तीर की तरह चुभ सकती है। -
सहारा एक दवा है, जो बिना बोले असर करती है।
जब आप किसी का हाथ थामते हैं, तो आप कह रहे होते हैं – “मैं तुम्हारे साथ हूं”। -
सलाह कभी-कभी दूरी बना देती है।
जबकि सहारा रिश्तों को और गहराई देता है। आप जब सिर्फ सुनते हैं, तो सामने वाला खुलने लगता है।
कैसे दें दुख में सहारा?
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सिर्फ सुनें, बीच में न टोके।
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उनके साथ कुछ समय शांति से बैठें।
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कोई जबरदस्ती न करें—जैसे "रो मत" या "भूल जाओ" जैसे वाक्य हटा दें।
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कहें, "मैं समझ नहीं सकता, लेकिन तुम्हारे साथ हूं।"
मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण:
मनोविज्ञान कहता है कि दुःख में व्यक्ति को जब emotional validation मिलती है, तो उसकी healing तेजी से होती है। जब वो यह महसूस करता है कि कोई उसे समझने की कोशिश कर रहा है, तो उसका बोझ आधा हो जाता है।
निष्कर्ष:
हर दर्द को हल नहीं किया जा सकता, लेकिन हर दर्द में किसी का साथ दिया जा सकता है।
इसलिए जब अगली बार कोई अपना टूटा हुआ लगे, तो सलाह देने से पहले उसे गले लगाइए।
दुख को दवा की नहीं, दिल से लगे किसी अपने की जरूरत होती है।


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