आत्म मूल्यांकन
एक बार एक व्यक्ति कुछ पैसे निकालने के लिए बैंक में गया। उसने एक लाख चालीस हज़ार रुपये निकाले थे। उसे पता था कि कैशियर ने गलती से एक लाख चालीस हज़ार रुपये देने के बजाय एक लाख साठ हज़ार रुपये उसे दे दिए हैं, लेकिन उसने ऐसा आभास कराया जैसे उसने पैसे गिने ही नहीं और कैशियर की ईमानदारी पर उसे पूरा भरोसा है। उसने चुपचाप पैसे रख लिए।
उसके इस कार्य में उसका कोई दोष था या नहीं, लेकिन पैसे बैग में रखते ही 20,000 अतिरिक्त रुपयों को लेकर उसके मन में उधेड़बुन शुरू हो गई। एक बार उसके मन में आया कि फालतू पैसे वापस लौटा दे, लेकिन दूसरे ही पल उसने सोचा कि जब मैं गलती से किसी को अधिक पेमेंट कर देता हूँ, तो मुझे कौन लौटाने आता है?
लेकिन इंसान के अंदर सिर्फ दिमाग ही नहीं होता... दिल और अंतरात्मा भी होती है... रह-रह कर उसके अंदर से आवाज़ आ रही थी कि "तुम किसी की गलती से फायदा उठाने से नहीं चूकते और ऊपर से बेईमान न होने का ढोंग भी करते हो। क्या यही ईमानदारी है?"
उसकी बेचैनी बढ़ती जा रही थी। अचानक ही उसने बैग में से बीस हज़ार रुपये निकाले और जेब में डालकर बैंक की ओर चल दिया।
रुपये पाकर कैशियर ने चैन की सांस ली। उसने कस्टमर को अपनी जेब से हज़ार रुपये का एक नोट निकालकर उसे देते हुए कहा, "भाई साहब, आपका बहुत-बहुत आभार! आज मेरी तरफ से बच्चों के लिए मिठाई ले जाना। प्लीज मना मत करना।"
"भाई, आभारी तो मैं हूँ आपका और आज मिठाई भी मैं ही आप सबको खिलाऊँगा," कस्टमर ने बोला।
कैशियर ने पूछा, "भाई, आप किस बात का आभार प्रकट कर रहे हो और किस ख़ुशी में मिठाई खिला रहे हो?"
कस्टमर ने जवाब दिया, "आभार इस बात का कि बीस हज़ार के चक्कर ने मुझे आत्म-मूल्यांकन का अवसर प्रदान किया। आपसे ये गलती न होती तो न तो मैं द्वंद्व में फँसता और न ही उससे निकल कर अपनी लोभवृत्ति पर काबू पाता। यह बहुत मुश्किल काम था। घंटों के द्वंद्व के बाद ही मैं जीत पाया। इस दुर्लभ अवसर के लिए आपका आभार।"






0 टिप्पणियाँ